लोगों की राय

लेख-निबंध >> औरत का कोई देश नहीं

औरत का कोई देश नहीं

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2008
पृष्ठ :236
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 7014
आईएसबीएन :9788181439857

Like this Hindi book 7 पाठकों को प्रिय

150 पाठक हैं

औरत का कोई देश नहीं होता। देश का अर्थ अगर सुरक्षा है, देश का अर्थ अगर आज़ादी है तो निश्चित रूप से औरत का कोई देश नहीं होता।...

पुरुष की पत्नी या प्रेमिका होने के अलावा औरत की कोई भूमिका नहीं है

('अनुरणन' और 'वॉन्ग कनेक्शन' नामक दो अत्याधुनिक फ़िल्म में)

इन दिनों शहर में दो बांग्ला फिल्मों को ले कर काफ़ी हड़कम्प मची हुई है। चारों तरफ़ इन फ़िल्मों में इश्तिहार ही इश्तिहार! प्रोड्यूसर और अभिनेताओं के इंटरव्यू पर इंटरव्यू लिये जा रहे हैं। इन दोनों बांग्ला फिल्मों में ढेर सारे अंग्रेजी संवाद मिला कर यह समझाया गया है कि ये फ़िल्में पढ़े-लिखे और सचेतन तबके के लिए हैं, आधुनिक मन के लोगों के लिए और नयी पीढ़ी के नये नज़रिये वाले जवान पुरुष-महिलाओं के लिए, जो लोग एक जुमला बांग्ला में बोलते हैं तो पाँच जुमले अंग्रेजी में। अगर वे लोग उच्च वर्ग के हुए तो उनका बांग्ला उच्चारण बेहद फूहड़ किस्म का होना चाहिए। इस बात से इनकार करने का कोई उपाय नहीं है कि आजकल के नये-नये नागरिकों का चाल-चलन, चेहरा-मोहरा भी ऐसा ही होता है। 'अनुरणन' फ़िल्म में राहुल और अमित भी ऐसे पात्र हैं। राहुल और अमित अनुरणन' के दो पुरुष अभिनेता हैं, अपने-अपने काम में व्यस्त! एक आर्किटेक्ट है और दूसरा व्यवसायी! उन दोनों की बीवियाँ बेहद खूबसूरत, शिक्षिता! क्या करती हैं? जी. 'हाउसवाइफ' हैं। परनिर्भर! उनके काम हैं. सज-धजकर रहना. सन्दर-सन्दर साड़ी-कपड़े पहनना, पति की संगिनी बनना और फालतू ही घूमते-फिरते रहना।

फ़िल्म 'अनुरणन' में एक मर्द के साथ, अन्य मर्द की बीवी का नाता जुड़ जाता है। मर्द है-राहुल और दूसरे मर्द की बीवी है-प्रीति! प्रीति का जीवन ऐसा है कि पति का प्रेम तो नसीब ही नहीं होता, तन की साध-प्यास मिटाने के लिए भी पति का संग-साथ नहीं मिलता। पति द्वारा प्रत्याख्यान किये जाने पर वह औरत किसी दूसरे मर्द की ओर दौड़ पड़ती है। उस औरत की आँखों की दृष्टि में और चेहरे पर मर्द के प्रति दबा-ढंका प्रोत्साहन झलकता रहता है। यह स्वाभाविक भी था क्योंकि उसका पति उसे मानसिक या शारीरिक, कोई सुख नहीं दे पाता। पति के साथ नहीं पति के दोस्त राहुल से उसका दिल मिल जाता है। उन दोनों के बीच आम वजहों का पहाड़ है। राहुल भी उन दिनों पहाड़ पर गया हुआ है। वह औरत मज़े-मज़े से उस सुदूर पहाड़ पर उस दोस्त के पास चली जाती है।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. इतनी-सी बात मेरी !
  2. पुरुष के लिए जो ‘अधिकार’ नारी के लिए ‘दायित्व’
  3. बंगाली पुरुष
  4. नारी शरीर
  5. सुन्दरी
  6. मैं कान लगाये रहती हूँ
  7. मेरा गर्व, मैं स्वेच्छाचारी
  8. बंगाली नारी : कल और आज
  9. मेरे प्रेमी
  10. अब दबे-ढँके कुछ भी नहीं...
  11. असभ्यता
  12. मंगल कामना
  13. लम्बे अरसे बाद अच्छा क़ानून
  14. महाश्वेता, मेधा, ममता : महाजगत की महामानवी
  15. असम्भव तेज और दृढ़ता
  16. औरत ग़ुस्सा हों, नाराज़ हों
  17. एक पुरुष से और एक पुरुष, नारी समस्या का यही है समाधान
  18. दिमाग में प्रॉब्लम न हो, तो हर औरत नारीवादी हो जाये
  19. आख़िरकार हार जाना पड़ा
  20. औरत को नोच-खसोट कर मर्द जताते हैं ‘प्यार’
  21. सोनार बांग्ला की सेना औरतों के दुर्दिन
  22. लड़कियाँ लड़का बन जायें... कहीं कोई लड़की न रहे...
  23. तलाक़ न होने की वजह से ही व्यभिचार...
  24. औरत अपने अत्याचारी-व्याभिचारी पति को तलाक क्यों नहीं दे देती?
  25. औरत और कब तक पुरुष जात को गोद-काँख में ले कर अमानुष बनायेगी?
  26. पुरुष क्या ज़रा भी औरत के प्यार लायक़ है?
  27. समकामी लोगों की आड़ में छिपा कर प्रगतिशील होना असम्भव
  28. मेरी माँ-बहनों की पीड़ा में रँगी इक्कीस फ़रवरी
  29. सनेरा जैसी औरत चाहिए, है कहीं?
  30. ३६५ दिन में ३६४ दिन पुरुष-दिवस और एक दिन नारी-दिवस
  31. रोज़मर्रा की छुट-पुट बातें
  32. औरत = शरीर
  33. भारतवर्ष में बच रहेंगे सिर्फ़ पुरुष
  34. कट्टरपन्थियों का कोई क़सूर नहीं
  35. जनता की सुरक्षा का इन्तज़ाम हो, तभी नारी सुरक्षित रहेगी...
  36. औरत अपना अपमान कहीं क़बूल न कर ले...
  37. औरत क़ब बनेगी ख़ुद अपना परिचय?
  38. दोषी कौन? पुरुष या पुरुष-तन्त्र?
  39. वधू-निर्यातन क़ानून के प्रयोग में औरत क्यों है दुविधाग्रस्त?
  40. काश, इसके पीछे राजनीति न होती
  41. आत्मघाती नारी
  42. पुरुष की पत्नी या प्रेमिका होने के अलावा औरत की कोई भूमिका नहीं है
  43. इन्सान अब इन्सान नहीं रहा...
  44. नाम में बहुत कुछ आता-जाता है
  45. लिंग-निरपेक्ष बांग्ला भाषा की ज़रूरत
  46. शांखा-सिन्दूर कथा
  47. धार्मिक कट्टरवाद रहे और नारी अधिकार भी रहे—यह सम्भव नहीं

विनामूल्य पूर्वावलोकन

Prev
Next
Prev
Next

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book